आदतें बदल गये हैं, अब बारिश नही आती...
पेह्ले प्यार का संदेश लाती थी, अब आती है तो तबाही मचा देती...
यह इसकी आदत हमने ही बिगड़ा है,
कभी देर से आती है तो कभी रुक रुक के....
फिर कभी ज़ोरों से तो कभी दूर् दूर् से बरस जाती...
बस तबाही ही मचाती...
बस तबाही ही मचाती....!
Good Morning, Friends!
Tried this short poem in Hindi today. It is about how monsoon has changed it's ways due to change in our habits. We have ruined it's patterns and distribution. So, what we get from it now is devastation - be it via droughts or floods...
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